Sunday, August 5, 2007

लोक-कल्याण के संदेशवाहक देवर्षि नारद

देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन कहा जाता है। इसी कारण सुभी युगों में, तीनों लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गों में नारद जी का प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर सम्मान दिया है।


महाभारत के सभापर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास-पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों(अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत- विशारद, प्रभावशाली वक्ता, कवि , विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, सभी विधाओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं। भगवान की अधिकांश लीलाओं में नारद जी उनके अनन्य सहयोगी बने हैं। वे भगवान के पार्षद होने के साथ देवताओं के प्रवक्ता भी हैं।

लेकिन आजकल नारद जी का जो चरित्र-चित्रण हो रहा है, वह देवर्षि नारद की महानता के सामने एकदम बौना है। आज नारद जी के छवि की लड़ाई-झगड़ा करवाने वाले व्यक्ति अथवा विदूषक की बन गई है। यह उनके प्रकाण्ड पांडित्य एवं विराट व्यक्तित्व के प्रति सरासर अन्याय है। आज हमें आगे आकर समाज को नारद जी के व्यक्तित्व के बारे में बताना होगा।

चाणक्य नीति

संसार रूपी कड़वे वृक्ष पर दो फल
अमृत के समान हैं, पहला प्रिय
वचन और दूसरा सज्जनों की संगति।

- आचार्य चाणक्य