Sunday, August 12, 2007

सूचना क्रांति के साथ बदली पत्रकारिता

आगामी 15 अगस्त को हम अपनी आजादी की साठवीं सालगिरह मनाने जा रहे हैं। इस शुभ अवसर पर है। ये पंक्तियां पुनः स्मरण करनी होगी कि "खीचों न कमानों को, न तलवार निकालो। जब तोप मुक़ाबिल हो, तो अखबार निकालो।।" एक समय था जब ये पंक्तियां पत्रकारिता की बाइबिल समझी जाती थी। तब पत्रकारिता को एक प्रोफेशन नहीं मिशन समझा जाता था और जिसके उद्वेग से उद्वेलित हो संपूर्ण देश व समाज एक दिशा में बहता चला जाता था। जैसे-जैसे तकनीकी विकास होते गए, हर दिन नए आयाम बनते-बिगड़ते रहे और धीरे-धीरे पत्रकारिता का स्वरूप परिवर्तित होता चला गया। आज हम सूचना क्रांति के दौर से गुजर रहे हैं। वर्तमान समय में समाचार-पत्र हों या समाचार चैनल या कोई अन्य माध्यम, सभी अपने पाठकों या दर्शकों तक एक नई और एक्सक्लूसिव खबर या कहा जाए तो ब्रेकिंग न्यूज के साथ अपनी पहुंच बनाना चाहते हैं। और यहीं कारण है कि आज की पत्रकारिता सनसनीखेज पत्रकारिता का पर्याय बनकर रह गयी। समाचार माध्यम ऊल-जलूल खबरें हमारे सामने परोस रहे हैं। समाचार पत्रों में प्रसार संख्या बढ़ाने और चैनलों में टीआरपी रेटिंग में बढ़ोत्तरी करने की होड़ लगी है और होड़ हो भी क्यों न? आज अखबार के प्रकाशन व चैनलों के प्रसारण में लगने वाली पूंजी के कारण पत्रकारिता ने उद्योग का रूप ले लिया है। ऐसी स्थिति में उसमें लगने वाला पैसा किस प्रकार मिशनरी संकल्पों का वाहक बन सकता है? आज के समय में यह तंत्र सीधा प्रकाशक व प्रसारणकर्ता के हितों से जुड़ गया है। वर्तमान समय में पत्रकारिता की चुनौतियां उसकी स्वयं की समस्याएं बन चुकी हैं, जिसका निदान यदि जल्द ही न किया गया तो पत्रकारिता एक ऐसी व्यूह रचना में उलझ कर रह जाएगी जिसे भेद पाना मुश्किल हो जाएगा। आज हमें पुनः विचार करना होगा कि आखिर पत्रकारिता का मूल उद्देश्य क्या है?
और साथ ही साथ हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं।