Monday, August 6, 2007

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का पत्रकारिता में योगदान

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी में आधुनिक साहित्य के जन्मदाता और भारतीय पुर्नजागरण के एक स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं। वे सन् १८५० में धर्मनगरी काशी (वाराणसी) के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में जन्में थे। उनके पिता गोपाल चन्द्र एक अच्छे कवि थे और गिरधर दास उपनाम से कविता लिखा करते थे। भारतेन्दु जी की अल्पावस्था में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। अतः स्कूली शिक्षा प्राप्त करने में भारतेन्दु जी असमर्थ रहे। घर पर ही रहकर हिंदी, मराठी, बंगला, उर्दू तथा अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
पंद्रह वर्ष की अवस्था में ही भारतेन्दु जी ने साहित्य की सेवा प्रारंभ कर दी थी, अठारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने 'कविवचन सुधा' नामक पत्र निकाला जिसमें उस समय के बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। हिंदी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा। उन्होंने 'हरिश्चन्द्र पत्रिका' और 'बाल विबोधिनी' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। मातृभाषा की सेवा में उन्होंने अपना जीवन ही नहीं संपूर्ण धन भी अर्पित कर दिया। दीन-दुखियों की सहायता तथा मित्रों की सहायता करना वे अपना कर्तव्य समझते थे। उनका अत्यन्त अल्पायु में ही सन् १८८५ में देहांत हो गया।
उनके जीवन का मूल मंत्र था हिन्दी भाषा की उन्नति। वे कहा करते थे कि-
निज भाषा उन्नति लहै सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल।।

1 comment:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

भारतेन्दु जी के बारे में पढ कर अच्छा लगा। बधायी स्वीकारें। संयोग से मुझे भारतेन्दु पुरस्कार मिल चुका है (देंखे विवरण http://z-a-r.blogspot.com)